Sunday, April 14, 2019

क्या मुफ्त में हो सकती है विदेशों में पढ़ाई?


क्या मुफ्त में हो सकती है विदेशों में पढ़ाई


विदेशों में पढ़ाई करने के लिए आपके सामने एक ही समस्या आता है जो है पैसा, लेकिन अगर किसी देश में मुफ्त पढ़ाई हो, तो यह छात्रों के लिए खुशखबरी से कम नहीं है। यूरोप में भारतीय छात्र सबसे ज्यादा ब्रिटेन जाना पसंद करते हैं लेकिन जर्मनी ने ब्रिटेन को भी पीछा छोर दिया है क्योकि इसकी सबसे बड़ा कारण जर्मन यूनिवर्सिटी‍यों में मुफ्त मे पढ़ाई होती है।

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अगर आप डाटा पे एक नजर डालेंगे तो आपको पता चल जायेगा की पिछले साल जर्मनी में करीब सवा चार लाख छात्र पढ़ने आए, जबकि ब्रिटेन में लगभग साढ़े तिन लाख। आप देख सकते है की विदार्थी की अनुपात तेजी से बदल रहा है और जहां तक भारतीय छात्रों की बात है, तो जर्मनी जाने वालों की संख्या में जबरदस्त तेजी आई है, जबकि ब्रिटेन में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या पिछले साल लगभग 10 फीसदी घट गई है। इससे सबित होता है की जर्मनी में विदार्थी की संख्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है 

भारत से लगभग दो लाख छात्र हर साल विदेशों में पढ़ने जाते हैं, जिनका लक्ष्य इंग्लिश बोलने वाले विकसित देश यानी अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड होता है। एक लाख यानी लगभग आधे छात्र अमेरिका जाना चाहते हैं, जबकि 38000 छात्रों के साथ ग्रेट ब्रिटेन दूसरे नंबर पर है और फिर ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा का नंबर आता है। जर्मनी में बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था होने के बाद भी यह भारतीयों के लिए अनुकूल नहीं माना जाता था क्योंकि जर्मन एक मुश्किल भाषा है और यहां पढ़ाई करने के लिए जर्मन आना लाजमी समझा जाता था, लेकिन हाल में ही कुछ बदलाव हुआ है अगर आप इंग्लिश भी जानते है तो आप वहां जा कर अपनी पढाई पढाई कर सकते

पढ़ाई पर खर्च : समझा जाता है कि विदेशों में पढ़ाई के लिए मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। ज्यादातर देशों के मामले में यह बात सही भी है। अमेरिका में औसत सालाना फीस लगभग 20 लाख रुपए है, जबकि ब्रिटेन में पिछली सरकार ने विश्वविद्यालयों की सालाना फीस लगभग नौ लाख रुपए तय कर दी थी। जर्मनी के सभी 16 प्रांतों ने सरकारी विश्वविद्यालयों की फीस खत्म कर दी है। अब यहां मुफ्त पढ़ाई की जा सकती है। हालांकि जर्मनी में प्राइवेट विश्वविद्यालय भी हैं और उनकी औसत फीस 12-15 लाख रुपए (15000-20000 यूरो) है। लेकिन छात्र आमतौर पर सरकारी यूनिवर्सिटीयों में पढ़ाई करना चाहते हैं, जिनकी अंतरराष्ट्रीय मान्यता है। पहले मुफ्त पढ़ाई की सुविधा सिर्फ जर्मन और यूरोपीय संघ के छात्रों को थी, जो अब विदेशी सहित सभी छात्रों के लिए कर दी गई है।

विषय और स्कॉलरशिप : जर्मनी अपनी तकनीकी दक्षता, मशीनरी रिसर्च और कार टेक्नोलॉजी के लिए जाना जाता है। इस वजह से यह इंजीनियरिंग के छात्रों और रिसर्च स्कॉलरों की पहली पसंद है। लेकिन वास्तव में यहां बायो टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट, इतिहास और अर्थशास्त्र की भी विश्वस्तरीय पढ़ाई होती है। यहां के बर्लिन, लाइपजिश, म्यूनिख और आखेन जैसे कुछ विश्वविद्यालय दुनियाभर में अव्वल माने जाते हैं। भारत से जर्मनी आने की इच्छा रखने वाले छात्रों को जर्मन एक्सचेंज एजुकेशन प्रोग्राम यानी डाड की वेबसाइट (daad.de) पर नजर रखनी चाहिए। डाड हर साल अलग-अलग विषयों में भारतीय छात्रों को जर्मनी में रिसर्च और पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप देता है। यूरोपीय संघ की संस्था एरासमुस (ec.europa.eu) पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा स्कॉलरशिप देने वाली संस्था है, जो जर्मनी में पढ़ाई के लिए भी छात्रवृत्ति देती है। वैसे अलग-अलग विषयों में मिलने वाली स्कॉलरशिप के बारे में इस लिंक (//goo.gl/JHs137) से ज्यादा जानकारी मिल सकती है।

रहने का खर्च : स्कॉलरशिप न मिले, तो भी कम पैसों में जर्मनी में पढ़ाई संभव है। दाखिला लेने के लिए यहां की यूनिवर्सिटीयों में सीधे संपर्क किया जा सकता है। ज्यादातर यूनिवर्सिटी की वेबसाइट इंग्लिश में उपलब्ध है। छात्रों के लिए जर्मनी में सबसे बड़ा खर्च मकान का किराया होता है। डाड ने जर्मन छात्रों के लिए औसत खर्च का अनुमान लगाया है, जिसके मुताबिक म्यूनिख जैसे दक्षिणी शहरों में कम से कम 350 यूरो (27000 रुपए) प्रतिमाह से कम किराए पर एक कमरे का मकान नहीं मिल सकता है, लेकिन अगर स्टूडेंट हॉस्टल (प्राइवेट) का विकल्प देखा जाए, तो यह लगभग 240 यूरो (19000 रुपए) में मिल सकता है।

डाड ने अपने पास उपलब्ध डाटा के अनुसार बताया है कि जर्मनी में छात्रों को खाने-पीने के लिए हर महीने 165 यूरो, कपड़ों के लिए 52 यूरो, ट्रांसपोर्ट के लिए 82 यूरो, टेलीफोन और इंटरनेट के लिए 33 यूरो, पढ़ाई से जुड़ी सामग्री के लिए 30 यूरो और दूसरे खर्चों के लिए 68 यूरो की जरूरत पड़ती है। ट्यूशन फीस मुफ्त है यानी महीने में 670 यूरो (54000 रुपए) में छात्र आराम से रह सकते हैं। जर्मनी में स्वास्थ्य बीमा अनिवार्य है, जो इस खर्च में नहीं जुड़ा है। छात्रों का स्वास्थ्य बीमा लगभग 90 यूरो प्रतिमाह में हो सकता है। दूसरी ओर ब्रिटेन में छात्रों का औसत खर्च 2000 पाउंड (दो लाख रुपए) प्रतिमाह बताया जाता है।

जर्मनी में छात्र आमतौर पर अपने खर्च का बहुत बड़ा हिस्सा खुद ही कमा लेते हैं। यहां पढ़ाई के साथ काम करने की इजाजत है और छात्र हर साल 120 दिन काम कर सकते हैं। उन्हें हफ्ते में 20 घंटे काम की इजाजत है। आमतौर पर वे शाम को रेस्त्रां या दुकानों में तीन-चार घंटे काम कर लेते हैं। जर्मनी में न्यूनतम तनख्वाह साढ़े आठ यूरो प्रति घंटा है और इस तरह से उनके पास अपना खर्च चलाने के लिए पर्याप्त पैसे जमा हो जाते हैं।

इमिग्रेशन पॉलिसी : अमेरिका या ब्रिटेन के मुकाबले जर्मनी में इमिग्रेशन पॉलिसी आसान है। ब्रिटेन की एक मुश्किल यह है कि वहां छात्र वीजा पर रहने वाले लोग काम नहीं कर सकते। अगर पढ़ाई के बाद ब्रिटेन में गैर यूरोपीय संघ के देशों के छात्रों को काम मिल भी जाता है तो उन्हें पहले अपने देश लौटना पड़ता है और वहां से वर्क वीजा लेकर आना पड़ता है। पहले ऐसा नहीं था। ब्रिटेन ने यह नियम वीजा फ्रॉड को रोकने के लिए बनाया है, लेकिन इससे वहां छात्रों की संख्या कम हो रही है। जर्मनी में यह बंदिश नहीं है। यहां पढ़ाई के दौरान काम को प्रोत्साहित किया जाता है और कोशिश होती है कि छात्रों को जर्मनी के अंदर नौकरी मिल जाए। पढ़ाई खत्म होने के बाद अगर काम न मिले, तो भी 18 महीने का वर्क सर्च वीजा मिल सकता है। जर्मनी शेंगन क्षेत्र में आता है यानी यहां पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए शेंगन इलाके के दूसरे बड़े देश फ्रांस, बेल्जियम, और नीदरलैंड्स देशों के दरवाजे भी खुले रहते हैं, उन्हें वहां भी नौकरी मिल सकती है, जबकि ब्रिटेन इससे बाहर है और वहां के लिए अलग वीजा लेना पड़ता है।


भाषा की समस्या : जर्मन दुनिया की सबसे मुश्किल भाषाओं में गिना जाता है। हालांकि अब कई यूनिवर्सिटी अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई करा रही हैं, लेकिन जर्मनी में रहने और यहां काम करने के लिए जर्मन भाषा की बुनियादी जानकारी होना बेहतर है। यहां लगभग सभी शहरों में जर्मन भाषा सीखने की सुविधा होती है। अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर सर्वे करने वाली संस्था एमएम एडवाइजरी की एमएम मथाई ने यूनिवर्सिटी वर्ल्डन्यूज से कहा, जर्मनी विदेशी छात्रों को जो पैकेज दे रहा है, वह इतना आकर्षक है कि छात्र जर्मन भाषा की बाधा को पार करने के लिए तैयार हो रहे हैं। जर्मनी यूरोप में सबसे आगे के देशों में गिना जाता है और तकनीकी तौर पर बेहद सशक्त देश है। फिलहाल भारत के करीब 12000 छात्र जर्मनी में पढ़ते हैं।

भारतीयों छात्रों के लिए जन्नत बना जर्मनी

भारतीयों छात्रों के लिए जन्नत बना जर्मनी

विदेश में पढ़ाई करने का सपना देखनेवालों स्टूडेंट्स के लिए जर्मनी  सबसे बेहतर ऑप्शन बनकर उभर रहा है।

विदेश में पढ़ाई करने का सपना देखनेवालों स्टूडेंट्स के लिए जर्मनी सबसे बेहतर ऑप्शन बनकर उभर रहा है। यूरोप में उच्च शिक्षा के लिए ट्यूशन फीस ख़त्म कर दिया गया है। इस कदम से उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड या अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों के लिए एक और विकल्प खुल गया है।
भारतीय छात्रों की संख्या के मामले में आज भी अमेरिका सबसे उपर है। लेकिन इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को लेकर छात्रों में क्रेज़ कम हुआ है। वहीं जर्मनी जाने को लेकर भारतीय छात्रों की दिलचस्पी बढ़ी है।2008 से जर्मनी जाने वाले छात्रों की तादाद में 114 % का इज़ाफा हुआ है।
जर्मनी में अब अंग्रेज़ी में भी कई पाठ्यक्रम की पेशकश की जा रही है। इसके लिए आपको जर्मनी जानने की ज़रूरत नहीं है।

1. जर्मनी में अब अंग्रेज़ी में भी कई पाठ्यक्रम की पेशकश की जा रही है. इसके लिए आपको जर्मनी जानने की ज़रूरत नहीं है.
2.ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद छात्र 18 महीने तक जर्मनी में ही नौकरी की तलाश कर सकते हैं. जबकि इंग्लैंड में ये अवधि 4 महीने, अमेरिका में 1 साल और ऑस्ट्रेलिया में 2 साल है.
3. जर्मनी में पढ़ाई के दौरान छात्र सालभर में 120 पूरे दिन और 240 आधे दिन काम कर सकते हैं.
4.पूरी दुनिया की 100 सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी में जर्मनी की 8 यूनिवर्सिटी श‌ुमार करती हैं.
5.तुलनात्मक रूप से जर्मनी की सभी यूनिवर्सिटीज़ में गैर-पेशेवर कोर्स की सालाना फीस सामान्य है. जबकि आइवी लीग विश्वविद्यालयों और छात्रवृत्ति में कटौती के कारण इसको नहीं जोड़ा गया है.

 



जर्मनी में संस्कृत शब्दों का बोलबाला


जर्मनी में संस्कृत शब्दों का बोलबाला

भारत के बाहर अगर कोई देश संस्कृत की चिंता करता है तो वह जर्मनी है।

अगर संस्कृत को लेकर हो-हल्ला होगा तो चाहे-अनचाहे जर्मन भाषा पर बात होगी ही। अजीब विडंबना है कि भारत के बाहर अगर कोई देश संस्कृत की वाजिब चिंता करता है तो वह जर्मनी है।

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बर्लिन की सड़कों पर आपको जर्मन भाषा में गीता की प्रतियां और संस्कृत-जर्मन शब्दकोश आसानी से मिल जाएंगे। जर्मन-संस्कृत के विद्वान नियमित रूप से अपने शोधपत्र प्रकाशित करते रहते हैं। ऊंघती संस्कृत भाषा को यूरोप के इस शक्तिकेंद्र में हरसंभव तवज्जो मिलती है। इसके बावजूद भारत के मानव संसाधन मंत्रालय ने पहले जर्मन को त्रिभाषा योजना में शामिल करने का निर्णय लिया और अब उसकी जगह संस्कृत या किसी अन्य भारतीय भाषा को रखने का फ़ैसला। हालांकि 2011 तक यही व्यवस्था थी।
बहस की गड़बड़ी
भारत सरकार के इस फ़ैसले को बहुत ज़्यादा चर्चा मिल रही है। जर्मनी ने इस संबंध में भारत को नया प्रस्ताव दिया है ताकि जर्मन भाषा को हायर सेकेंडरी कक्षाओं में पढ़ाया जा सके। जर्मनी में रहने वाले भारतीय के तौर पर मुझे यह सारी बहस ही थोड़ी गड़बड़ लगती है। यह एक कूटनीतिक आदान-प्रदान है। आख़िरकार भारत को हर छात्र कोई भी और चाहे जितनी भी भाषाएं सीखने के लिए स्वतंत्र है, फिर इसे इतना बड़ा मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है? एक बात हमें सीधे तौर पर समझ लेनी चाहिए कि जर्मनी कई बड़े उद्योगों का केंद्र है, वहाँ रोज़गार के काफ़ी अवसर हैं और दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हैं जो बच्चों के सिर पर कभी न ख़त्म होने वाले छात्र ऋण का बोझ नहीं लादते।
जर्मनी का आकर्षण
जर्मनी में उम्रदराज लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है और यह बीसवीं सदी की छाया से निकलकर लोकप्रिय हो रहा है जिसके कारण इसके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। जर्मनी में काम करने की एक ही शर्त है कि आपको जर्मन भाषा आनी चाहिए। आप इसे अपने स्कूल में अनिवार्य भाषा के रूप में सीखते हैं या नहीं, यह आपकी समस्या है। जर्मन मीडिया में आने वाली ख़बरों के मद्देनज़र यह कहा जा सकता है कि भारतीयों को रोज़गार दिलाने के मामले में जर्मन संस्कृत से काफ़ी ज़्यादा मददगार साबित हो सकती है। इस बात को परखने के लिए भारत में सक्रिय जर्मन कंपनियों की सूची पर नज़र डाल लेना काफ़ी होगा।
उपयोगिता की बहस
किसी भाषा की उपयोगिता का विषय हमेशा विवादित रहा है। लेकिन हानि-लाभ की सूची बनाई जाए तो रोज़गार की दृष्टि से जर्मन व्यावहारिक रूप से ज़्यादा उपयोगी होगी। बहरहाल, एक और भाषा सीखना कभी भी घाटे का सौदा नहीं होता।
जर्मनी के हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय में चलने वाला 'ग्रीष्मकालीन संस्कृत संभाषण स्कूल' (द समर स्कूल ऑफ़ स्पोकेन संस्कृत) इस बात को शायद अच्छी तरह समझता है।
अध्यात्म की भाषा
संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन देने के पीछे भारत की सांस्कृतिक विरासत को सम्मानित करने का उद्देश्य है। दुनिया की बड़ी आबादी के लिए यह अध्यात्म की भाषा भी है। आज भले ही संस्कृत उतनी सक्रिय भाषा न हो लेकिन विभिन्न भारतीय भाषाओं में यह आज भी जीवित है।
अपनी भाषा का सम्मान करना क्या होता है इसे जर्मनी अच्छी तरह समझता है।
जर्मनी के महान कवि गोएथे भारतीय कवि कालिदास के बड़े प्रशसंक थे।
सदियों पुराना रिश्ता
गोएथे ने कालिदास के बारे में कई सराहनीय बातें कही हैं जो किसी भी भाषा में कालिदास पर शोध करने वाले शोधार्थियों के आज भी काम आ सकती हैं। जिस तरह की बहस खड़ी हुई है उसे देखते हुए कई ज्ञानपिपासुओं को फिर से इन दोनों महान रचनाकारों को पढ़ना पड़ेगा। फौरी बहस में कही गयी अधपकी बातों से दोनों भाषाओं के बीच सदियों पुराना संबंध टूटेगा नहीं क्योंकि ये दोनों भाषाएं एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी नहीं है। आख़िरकार 'संस्कृत और जर्मन' सुनने में हर हाल में 'संस्कृत बनाम जर्मन' से ज़्यादा भला लगता है।
 
संदर्भ-------   https://www.bhaskar.com/news/sanskritgermandebate-NOR.html




विदेशी भाषा सीखने के मुख्य लाभ हैं:-
·         विदेशों में रहने का रास्ते खुलते हैं।
·         आपका करियर के लिए अच्छा है।
·         बेहतर संवाद
·         देशों के बीच समझ
·         संस्कृतियों का प्रवेश द्वार
·         जीवन में और रोमांच
·         दूसरी भाषाओं को सीखने, सुनने और बोलने के साथ-साथ एक व्यक्ति अपनी खुद की भाषा की ओर भी एक नया दृष्टिकोण विकसित करता हैं।
·         देशों के बीच भी सांस्कृतिक मतभेदों को समाप्त किया जा सकता है।
·         दिमागी क्षमता का इस्तेमाल

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·         कोई भी भाषा सीखना वैसे तो बहुत उपयोगी होता है। लेकिन यहां पेश हैं किसी विदेशी भाषा को सीखने के आठ फायदे।


·         विदेश का रास्ता खोले : चाहे आप किसी भी क्षेत्र में काम करें, आप जिस देश की भाषा जानते हैं तो आगे चलकर उस देश में नौकरी भी तलाश सकते हैं। जर्मनी जैसे देशों में बसने की इच्छा रखने वाले डॉक्टर, इंजीनियर, नर्स या किसी भी पेशेवर के लिए जर्मन भाषा का ज्ञान रोजगार के दरवाजे खोल देता है।

·         करियर के लिए अच्छा : जो लोग कई भाषाएं जानते हैं उन्हें करियर में कहीं ज्यादा बेहतर मौके मिल सकते हैं। अमेरिका जैसे देश में इसका आसान उदाहरण देखिए, जो लोग विदेशी भाषाएं जानते हैं, वे केवल अंग्रेजी जानने वालों के मुकाबले 5 से 25 प्रतिशत तक अधिक कमाते हैं।

·         बेहतर संवाद : अन्य भाषाओं को सुनने, सीखने और बोलने के साथ साथ, आप अपनी खुद की भाषा की ओर भी एक नया दृष्टिकोण विकसित करते हैं। आजमा कर देखिएगा कि जब आप किसी विदेशी भाषा का व्याकरण सीखते हैं तो फिर कैसे उसे अपनी भाषा पर आजमाते और उसकी तुलना करते हैं।

·         देशों के बीच समझ : कई बार लोग दूसरे देशों और अन्य संस्कृतियों के बारे में गलत राय बना लेते हैं। विदेशी भाषा सीख कर लोगों ही नहीं देशों के बीच भी सांस्कृतिक मतभेदों को कम किया जा सकता है। इससे आपसी समझ और सम्मान बढ़ेगा। साथ ही विश्व में एकजुटता और सहिष्णुता बढ़ेगी।

·         संस्कृतियों का प्रवेश द्वार : भाषा के माध्यम से आप कोई नई संस्कृति सीख सकते हैं। जब आप भाषा समझते हैं तभी किसी और संस्कृति के लोगों के साथ जुड़े पाते हैं। किसी विदेशी की भाषा में बात कर पाने से आप बहुत जल्दी दोस्त बना सकते हैं और दूर के लगने वाले लोग करीब आ जाते हैं।


·         जीवन में और रोमांच : भाषाएं जान कर हम कई अन्य देशों के साहित्य, संगीत और कलाओं से मनोरंजन पा सकते हैं। किसी अनुवादक या शब्दकोश पर निर्भर हुए बिना वहां के मूल निवासी से बातचीत कर सकते हैं। इशारे किए बिना खाना ऑर्डर कर सकते हैं और जीवन को सही मायनों में रोमांचक बना सकते हैं।

·         दिमागी क्षमता का इस्तेमाल : कई भाषाओं में संवाद कर पाना एक खास प्रतिभा मानी जाती है। हर किसी के लिए कोई विदेशी भाषा को सीखना फायदेमंद होता है। ऐसा करने वालों का मस्तिष्क ज्यादा सक्रिय और कुशलता से काम करने लगता है। अल्जाइमर्स या ऐसे कई दिमागी रोगों का खतरा भी कम हो जाता है।


Tuesday, April 9, 2019

विदेश में करनी है नौकरी तो होना चाहिए वहां की लिए भाषा का ज्ञान

भाषा चाहे कीसी भी देश का हो उसका अपना महत्व होता है। भारत में विदेशी भाषा सीखने का प्रचलन काफी वर्ष पहले ही शुरू हो गया था, अब तो सभी देशों के भाषाविद् अपनी-अपनी भाषा के स्कूल चल रहे हैं। अगर करनी है  विदेशों में जॉब तो आपको वहां की भाषा की जानकारी होने चाहिए। भाषा के ज्ञान से आप दुनिया को अपनी बात अच्छी तरह समझा सकते हैं। भारत में कई मल्टी नेशनल कंपनियां अपना कारोबार चला रही हैं। ऐसे में विदेशी भाषाओं की हो जानकारी तो आपको मिल सकता है  इन कंपनियों में नौकरी। 


किसी भी विदेशी  भाषा को सीखने से खासकर युवाओं को नौकरी में काफी मदद मिलती है। अंग्रेजी के बाद ये दूसरी भाषा है जो कई देशों में बोली जाती है। जर्मन भाषा  जर्मनी, आस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड के अलावा फ्रांस, इटली और बेल्जियम के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। इस भाषा के ज्ञाताओं की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। केंद्रीय विद्यालय में इस भाषा को शुरू भी किया गया है।गुजरात, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के कुछ स्कूलों में यह भाषा एच्छिक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। 

मोदी सरकार में भारत और जर्मनी के बीच भी भाषा पढ़ाने को लेकर केंद्रीय विद्यालय में तीसरी भाषा पर सहमति बनी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की बर्लिन में हुई बातचीत में दोनों इस बात पर सहमत हुए कि युवाओं को दोनों देश एक-दूसरे की भाषा जानने का अवसर मिलेगा। मानव संसाधन मंत्रालय ने भी निर्णय लिया कि राष्ट्रीय हित में जर्मन भाषा की पढ़ाई होनी चाहिए। जर्मन भाषा की शिक्षक कहत हैं कि इस भाषा के ज्ञाता यदि जर्मन में कोई शिक्षा लेना चाहता है तो उसे स्कॉलरशिप मिलती है। जर्मनी में इस भाषा के ज्ञात को उच्च पढ़ाई के लिए कोई फीस अदा नहीं करनी पड़ती। 


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कुछ जानकारी मै आपको "गॉथ इंस्टीट्यूट"  के बारे में दे दू की विदेशी भाषा काे सीखना मुश्किल नहीं है। यहां छात्र केवल जर्मन भाषा सीख सकते हैं, बल्कि अनुभवी फोरन रिटर्न टीचर्स से तैयार कर गॉथ इंस्टीट्यूट में परीक्षा देकर मैक्स मूलर से प्रमाण पत्र ले सकते हैं जो पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है। कई छात्र इसका लाभ लेकर बेहतर नौकरी और विदेश में पढ़ाई कर अपना लक्ष्य हासिल कर रहे हैं। छोटी उम्र में यदि बच्चों को विदेशी भाषा का ज्ञान करवाया जाए तो उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ हो जाती है जो कॅरिअर बनाने में मददगार साबित होती है। किसी देश की भाषा का पूरा ज्ञान होने पर उस देश की संस्कृति को समझने में आसानी होती है और भविष्य में नौकरी के अच्छे अवसर मिलते हैं। विदेशी भाषा का ज्ञान से आप दुनिया को अपनी बात अच्छी तरह समझा सकते हैं और लोगों की नजर में आपकी इज्जत भी बढ़ जाती है। विदेशी भाषाओं के ज्ञान से आपके सोचने का तरीका से लेकर आपके उठने बैठे बोल चाल सब बदल जाता है। 

Monday, April 8, 2019

100 महानतम विदेशी भाषा की फिल्में


  • 30 अक्टूबर, 2018 को बीबीसी कल्चर द्वारा ‘100 महानतम विदेशी भाषा की फिल्में’ सूची जारी की गई।
  • सूची में 24 देशों और 19 भाषाओं की 100 फिल्मों को शामिल किया गया है।
  • सूची में सर्वाधिक 27 फिल्में फ्रांसीसी भाषा की हैं।
  • सूची में जापानी निर्देशक अकिरा कुरोसावा

  • द्वारा निर्देशित ‘सेवेन सामुराई’ फिल्म को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है।
  • सूची में दूसरा एवं तीसरा स्थान क्रमशः बाइसिकिल थीव्स (निर्देशक विटोरियो डि सिका) और टोक्यो स्टोरी (निर्देशक यासुजिरो ओजु) को प्राप्त हुआ है।
  • थियो एंजेलोपोलस द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लैंडस्केप इन द मिस्ट को अंतिम स्थान (100 वां) स्थान मिला है।
  • भारतीय निर्देशक सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित ‘पाथेर पांचाली’ सूची में स्थान प्राप्त करने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म है।
  • सूची में 15वां स्थान प्राप्त करने वाली पाथेर पांचाली वर्ष 1955 में रिलीज हुई थी।


  • उल्लेखनीय है कि जुलाई, 2015 में बीबीसी द्वारा पहली बार ‘100 महानतम अमेरिकी फिल्में’ सूची जारी की थी।
  • इसके पश्चात वर्ष 2016 में ‘21वीं सदी की 100 महानतम फिल्में’ और वर्ष 2017 में ‘अब तक निर्मित महानतम’ सूची जारी की गई थी।